From नवल किशोर कुमार |
कितना अच्छा लगता था,
किनारे पर तुम्हारी लहरों को मुस्कराते देख़ना।
जाने क्या हुआ और क्यों हुआ,
एकपल में तुमने बदल दिया,
अपनी ममता का वह स्वरुप,
जब तुम्हारे विस्तृत आंचल में,
निश्चिंत हो हम चैन की सांस लेते थे,
कितना अच्छा लगता था,
किनारे पर तुम्हारी लहरों को उछलते-कूदते देख़ना।
तुम तो कोशी हो,
हम सबकी जीवनदायिनी कोशी,
चहूंओर फ़ैला तुम्हारा ममत्व,
धरती पर जीवन जन्मती थीं,
हरित आंचल में छुप चांद और सुरज,
तुम्हारी शोभा बढाते थे,
कितना अच्छा लगता था,
किनारे पर तुम्हारी लहरों को चमकते देख़ना।
हमें मालूम है पूर्व से ही,
बहुतेरे गलतियां हमने की हैं,
तुम्हारे ममतामयी सीने में,
ऊंचे और विशाल ख़ंजर भोंके हैं हम्ने,
हमें आज भी स्मरण है,
जब पहली बार तुम्हें कैद करने की,
असफ़ल कोशिश की थी हमने,
कितना अच्छा लगता था,
किनारे पर तुम्हारी लहरों को बेख़ौफ़ चलते देख़ना।
नवल किशोर कुमार