Friday 18 July 2008

पलकें बिछाये बैठा हुं

दीदार हुआ है जबसे काला तिल तेरे रुख़सार का,
दिल के दरवाजे पर दिल का तोहफ़ा लिये बैठा हुं।
इन बेचैन निगाहों को एक पल भी मयस्सर नहीं,
तुम्हारी राहों में एक नया गुलिस्तां सजाये बैठा हुं।

कल जब किया था इकरार तुम्हारी कातिल नजरों ने,
खुदा की कसम सारी दुनिया की नजर चुराये बैठा हुं।
ऐ मेरी जाने तमन्ना, जीवन की हर सांस तुम्हारी है,
एक तेरी चाहत में सांसों को थामे जमाने से बैठा हुं।

तुम्हारी बाहों में ही है जन्नत मेरी, दोनों जहान की,
खिलेगा चांद मेरे आंगन मे, इसी इंतजार में बैठा हुं।
मासूम दिल के मासूम अरमान बहक न जायें कहीं,
सदियों से अपने अरमानों को जंजीरों में जकड़ बैठा हुं।

ये आग है या तेरा हुस्न, यह तो ख़ुदा ही जानता है,
अपने बज्म के हर शय में आग लगाये बैठा हुं।
गम नहीं कि अब दोजख़ मिले या जन्न्त दीवाने को,
तेरे प्यार में मेरे हबीब जनमों से पलकें बिछाये बैठा हुं।

Wednesday 16 July 2008

जलजमाव- एक समस्या और कितने जिम्मेदार हैं हम



जलजमाव- एक समस्या और कितने जिम्मेदार हैं हम
वक़्त बीतता है और सभ्यतायें करवट लेती हैं। कभी मन सिहर उठता है विकास के आवरण पर लगी आग को देखकर। कभी मन कहता है बंद कर लें हम आख़ें अपनी ताकि हम वह न देख सके, जिन्हें हम देखना नहीं चाहते। बरसात के दिनों में जलजमाव कोई नयी बात नहीं, लेकिन आज के तकनीकी युग में सिर्फ़ और सिर्फ़ अकुशल प्रबंधन के कारण पटना जलमग्न हो गया है। अख़बारें अपना काम कर रही हैं और जनता चुपचाप अपने ऊपर प्रकृति के प्रकोप या फ़िर बदईंतजामी के कहर को देखने को मजबुर हो गये हैं। घुटनों तक पानी जीवन जीने की इच्छा का गला घोंट रही है।
दिनांक 16/7/08 को महत्वपूर्ण अखबारों ने सरकारी महकमे का सूचना पत्र प्रकाशित किया। इस पत्र में जलजमाव के वास्तविक हालात एवं इसके स्थायी हल सविस्तार बताया गया। बरसात के आंकड़े दिख़ा यह साबित करने की कोशिश की गयी कि सरकार मजबुर है क्योंकि रिकार्ड बारिश होने से ऐसी समस्या आयी है। जिन समाधानों को बताया गया उनमें से अधिसंख़्य पुराने ही हैं। कभी-कभी तो लगता है जैसे इस लोकतांत्रिक तंत्र में सबसे बेवकुफ़ जनता ही है। जब भी कोई घटना होती है शासक वर्ग आंकड़े बाजी का खेल दिखा देता है।


यह सरकार का घटिया मजाक नहीं तो क्या है? अपने पौने तीन साल के कार्यकाल में राज्य सरकार ने एक या दो नहीं बल्कि हजारों दिवास्वप्न दिख़ाये। कभी सेटेलाइट के द्वारा बाढ प्रबंधन का दावा किया गया। कभी पटना को पेरिस बनाने का दम भरा गया। इन सब्जबागों के मुकाबले में हकीकत को देखा जाये तो भले हमें कुछ मिले ना मिले लेकिन नेता और बाबु लोगों के तो वारे न्यारे हो ही जाते हैं। शहरी विकास पर पानी की तरह पैसा बहा चंद लोगों ने अपने लिये गंगा का निर्माण तो कर ही लिया जिसमें आने वाली उनकी सातों पीढियां मजे से गोते लगाते रहेंगी।
इस समस्या का कारण क्या है और उसका निदान क्या, यह सब सरलता से ढुंढा जा सकता है अगर हम निम्नलिखित प्रश्नों के उत्तर ईमानदारी से दे सकें।
(1) क्या हमने पौलीथिन को ना कहा है? अक्सर हम इन पौलीथिन को उनके उपयोग के बाद नालियों में फ़ेंक देते हैं जिसके कारण ये हमारे घर के नालियों से लेकर बड़े नालों में फ़ंसकर जलप्रवाह को बाधित कर देता है।
(2) बरसात के दिनों में जल की बहुत मात्रा नालियों के रास्ते बेकार चली जाती हैं। यदि हम अपने घर के एक हिस्से में बड़ा गडढा ख़ोद दें तो इससे दो फ़ायदे होंगे। पहला तो यह कि बरसात का पानी बेकार नहीं जायेगा और हम अपने जलस्तर को ऊंचा रखने में कामयाब होंगे। इसका दुसरा फ़ायदा यह होगा कि नालों पर दबाव कम होगा। क्या हमने इसके लिये कोई प्रयास किया है?
(3) क्या हमने अपने घर के पास एक पेड़ भी लगाया है?
आइये पहले हम पहल करें और सरकार को एक ऐसी राह दिख़ायें।

Sunday 13 July 2008

मुसलमानों कुछ तो सीखो हम हिन्दुओ से




यह तस्वीर बिहार की राजधानी पटना के एक छोटे से मुहल्ले बलाम्मिचक निवासी रवि की है। यह खैनी की दूकान चलाता है। इश्वर हो या अल्लाह यह सभी को सामान रूप से मानता है।
हिंदुत्व सौहार्द का इससे बड़ा प्रमाण और क्या हो सकता है। इसलिए मुसलमानों सीखो रवि से, दुसरे धर्मों का आदर करना, वरना मिट जाओगे।