Saturday 23 August 2008

क्यों घबराते हो तुम

क्यों घबराते हो तुम

जिन्दगी जीने के लिये है मेरे यारों,
युं मुसीबतों से क्यों घबराते हो तुम।

माना मुश्किलें अनेक हैं संसार में,
सच्चाई बिकती यहां भरे बाजार में,
फ़ूल ख़िलेंगे एक दिन उजड़े बहार में,
क्यों हाथ थाम बैठे हो इस इंतजार में।


सफ़लता चलकर आएगी पास ख़ुद ही एक दिन,
युं असफ़लताओं से क्यों घबराते हो तुम।


जैसे उगता है सूरज नील गगन में,
दिख़ा अपना स्वरुप डुब जाता भंवर में,
इंसान का भी यही है कर्म इस संसार में,
जन्म लेना, जीना और मरना इस वाजार में।


इस समर के विजेता हो तुम साथियों,
युं क्षणिक संकटों से क्यों घबराते हो तुम।


दे रही दस्तक दूर से मंजिल तेरी ही आस में,
करेगी तुम्हारा ही वरण, वह भी मौन है इसी अहसास में,
कैसे छोड़ सकते हो तुम स्वयं को मधय मझधार में,
एक अकेले तुम ही तो नहीं इस पुरे संसार में।


तोड़ अनिश्च्चितता के बंधन, देख़ो एक बार तुम,
युं स्याह बादलों से क्यों घबराते हो तुम।

उस जीवन का है भला क्या मोल,
जिसकी अपनी कोई पहचान न हो,
हार-हार कर जीतता है विजेता यहां,
वह विजेता नहीं, जिसका कोई आत्मसम्मान न हो।


हार तो महज सीढी है लक्ष्य प्राप्ति का,
युं हार के डर से क्यों घबराते हो तुम।

नवल किशोर कुमार

Monday 18 August 2008

Shabana Ajami



आदरणीया शबाना जी,
अच्छी अभिनेत्री और एक अच्छा इंसान होने के नाते आप मेरे अभिवादन की हकदार हैं। आपकी इंसानी रिश्तों और जमीनी हकीकत से जुड़ी बाते अच्छी लगती हैं। आप स्वयं एक अदबी और परिपक्व रही हैं। आपने भारत में रह रहे मुसलमानों के बारे में जो कुछ भी कहा है वह निःसंदेह सत्य है, लेकिन आपने इस सत्य को या तो समझा नही या फ़िर बताने की जहमत नहीं उठाई। इससे पहले कि मैं आपको कुछ विशेष बातें बताऊं, मैं आपके सामने कुछ तस्वीरें दिख़ाना चाहता हूं।

उपरोक्त तस्वीरें और तथ्य कुछ कहती हैं। अगर आप ईमानदारी से सुनने की कोशिश करें तो आपको समझ में आयेगा कि आप गलत हैं। इससे ज्यादा और विशेष लिख़ने की मैं जरुरत नहीं समझता, क्योंकि जो ख़ाय गाय का गोश्त, वो कभी न हो हिंदु का दोस्त।