Tuesday, 18 November 2008

सुशासन की आरती

सुशासन की आरती

तीन बरस तक लूटे, जन-जन को जी भर चूसे,
तेरी है बड़ी महानता, जै जै जै जनहंता।

तुम महान, तुम्हारी सुशासन की महिमा अपार,
गरीब मर रहे भुख़ से, हर आदमी पीट रहा कपार।

निर्धन का धन हरने में, तुमको लाज न कोई आता,
मलाईदार डोसा के रसिया, दाल-भात न तुम्को भाता।

कलियुग के दुर्योधन, अपराधियों के तुम संरक्षक,
मारे जा रहे गरीब चहुंओर, आस्तीन के तुम तक्षक।

दलितों के विनाशक, हे महादलित अविष्कारक,
निज स्वार्थ में बांटा समाज, जै जै जै ख़लनायक।

मिटा देंगे दुख़-दर्द सारे, किये थे तुमने कई वादे,
हाय रे सुशासन की पत्री, सब रह गए सादे के सादे।

रोटी छीना गरीबों का, लोगों का रोजगार भी छीना,
देख़ गरीबों का हुजुम, चौड़ा हो जाता है तेरा सीना।

मीडिया के भग्वान तुम, है तेरी अगाध कृपा,
जो सच छुपा जता रहे, सब अपनी अपनी श्रद्धा।

बाढ के तुम निर्माता, तुम कोशी के हत्यारे,
सिवाय बिहार को लूटने के, आता न कोई काम प्यारे।

दरिंदे राज ठाकरे के तुम हो सच्चे उपासक,
युवाओं को जहर दे, बता रहे श्रेष्ठ दर्द निवारक।


सुशासन की यह आरती, जो न कोई नर गावे,
देख़े न मुंह विकास का, केवल भाषण पावे।

बिहारियों के शत्रु, हे सौहार्द के दुशासन,
छीन ली ख़ुशियां लाख़ों की, जै जै जै सुशासन।

नवल किशोर कुमार,
ब्रह्म्पुर, फुलवारीशरीफ, पटना-801505