माउंट एवरेस्ट की उंचाईयों से भी उंचे पहाड़ की चोटियां मुझे बड़ी प्यारी लग रही थीं। चारों तरफ़ श्वेत हिम का फ़ैला चादर एक अनोख़ी छटा बिख़ेर रहा था। मैं अकेला एक शिलाख़ड के कोने में दुबका था। मारे ठंढ के मेरे दांत आपस में गुत्थमगुत्थी कर रहे थे और मैं अपने ही जैसी आकृति की छाया को देख़ रहा था। अचानक मेरे पिताजी की कर्कश लेकिन मेरे लिये प्रेरणादायक आवाज ने मुझे उन हिंम पहाड़ियों से दुर कर दिया।
सपने देख़ना और उन्हें लिख़ना मेरे लिये सरल नहीं है लेकिन फ़िर भी मैने जो देख़ा है वह हूबहू आपके समक्ष है। आशा है आप मेरे सपनों को पढ कर अपनी प्रतिक्रिया से अवगत करायेंगे। आपके लिये एक और चीज इस पोस्ट में प्रकाशित कर रहा हुं। यह भारतीय डाक विभाग का सपना है। हम सब मिलकर दुआ करें कि इनका सपना यथार्थ को प्राप्त कर सके।
