Monday, 29 September 2008
जागो भारत जागो
घर की चाहरदीवारी में अगर सुरंग हो तो,
घुसपैठ को भला रोक सकता है कौन।
शासक बज जायें जब लुटेरे अपने ही देश के,
वतन की दुर्गति को भला रोक सकता है कौन।
बिकने लगे कौड़ी के भाव में चरित्र जब,
देश की बदहाली को भला रोक सकता है कौन।
जिस देश में हों असंख़्य गद्दार भरे,
उस देश के पराजय को भला रोक सकता है कौन।
वोटों के लिये तुष्टिकरण करते हों नेता जहां,
उस लोकतंत्र का पतन भला रोक सकता है कौन।
जलाया जाने लगे तिरंगा जब अपने ही वतन में,
ऐसे में शहीदों का अपमान भला रोक सकता है कौन।
जब कायर राजा के आंख़ों मे हो अफ़सोस के आंसु,
ऐसे में विस्फ़ोटों का सिलसिला भला रोक सकता है कौन।
नवल किशोर कुमार
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