Tuesday 8 July 2008

News From Bihar

बरसात की शुरुआत में,
गडढे बनते तालाब में,
सुशासन सरकार में लोगों का,
चैन से जीना मुहाल देखा,
भइया, मैंने बिहार का समाचार देखा।

माल महाराज का मिर्जा खेले होली,
नीतिश कर रहे अब जनता से ठिठोली,
यु पी ऐ के दिए पैसों पर,
सुशासन का नित नया प्रचार देखा,
भइया, मैंने बिहार का समाचार देखा।

दहशत छाई है सड़कों पर,
अपराधी छुट्टे घूम रहे अब सड़कों पर,
घरों में होता निरीह लोगों का,
क्रूरतम वीभत्स नरसंहार देखा,
भइया, मैंने बिहार का समाचार देखा।

सूरजभान भी गए कानून की भट्ठी में,
फाल्गुनी का पैर तोड़, नरेन्द्र रहे मस्ती में,
जेडीयू की गोद में शिशुवत,
बीजेपी का रोज़ होता प्रलाप देखा,
भइया मैंने बिहार का समाचार देखा।

Monday 7 July 2008

News From Bihar

वो हमारे शासक हैं, लोकतंत्र की सीढियों से चलकर देश के सीने में छुरा भोंक सहृदयता का अनूठा उदहारण प्रस्तुत करने वाले ये नेता हमारे पालनहार बने हैं। जिन्हें हमने चुना और मान सम्मान दिया, आज वाही हमारे सपनो को तार तार करने में लगे हैं। कांग्रेस अपना सामंतवादी चोला उतारने को तैयार नही, बीजेपी को राम मन्दिर के नाम से फुरसत नही, लेफ्ट को चीन प्रेम के आगे देश की परवाह नही,बसपा को मायावती की मूर्ति लगाने से छुट्टी नही और लालू और मुलायम को मुस्लिम प्रेम से इनकार नही। बिहार के सुशासन बाबु यानि नीतिश कुमार जी को उच्च जाति के लोगों की जी हुजूरी करने से फुरसत नही।
आज दिनांक ७ जुलाई २००८ को बिहार के राजधानी से मात्र १० किलो मीटर दूर कुर्जी मुहम्मद पुर गाँव में ९ लोगों को सामूहिक हत्या कर दी गई। यह कोई पहला मौका नही है जब बिहार में कत्ले आम हुआ। इससे पहले भी अपराधियों ने लोगों का खून पिया है। लेकिन जिस सब्जबाग को दिखाकर नीतिश जी सत्ता में आए वह तो मात्र झूठा ख्वाब ही रह गया। इस सप्ताह में करीब २५० से ज्यादा लोगों की हत्याएं हुई हैं। नीतिश बाबु जनता के प्रति कितने संवेदनशील हैं इसका अंदाज इसीसे लगाया जा सकता है। कुर्जी मुहम्मदपुर की घटना में ५ भूमिहार, ३ यादव और १ दुसाध का मर्डर किया गया। नीतिश जी ने अपने प्रतिनिधि के रूप में एक भूमिहार मंत्री श्री रामाश्य प्रसाद सिंघ को घटनास्थल पर भेजा। आख़िर भूमिहार भूमिहार का ही हो सकता है। यह मंत्री जी ने साबित कर दी। वे सिर्फ़ भूमिहार मृतकों के घर गए और अन्य लोगों को उनके हाल पर छोड़ दिया।
मुझे शर्म आता है के मैं उस राज्य का रहने वाला हूँ जहाँ के शासक ऐसे संवेदनशील मुद्दों पर भी गंभीरता से विचार करने के बजाय लाशों पर राजनीती करते हैं। क्योंकि मैं जानता हूँ के उन्हें तो शर्म आएगी नही क्योंकी वे जिस मिटटी के बने हैं उसमे शर्मिंदगी हैं ही नही।

आखरी पैगाम

बुझा है चिरागे जहाँ मेरे दिल का एक ज़माने से,
कोई तो मेरे महबूब को मेरे मुकाम का पता बता दे।
अपनी कब्र पर बैठ देख रहे राह उनके आने की,
कोई तो मेरे हमराह को मेरा दिले हाल बता दे।

वोक्त जा रहा है लम्हा लम्हा थामे राह अपनी,
कोई तो मेरे लम्हों को मेरे घर का राह दिखा दे।
खामोश जुबान, बंद होती पलकों में हसरते हैं बाकी
कोई तो मेरे दिलदार की वही दिलकश सूरत दिखा दे।

दिल बेजार है, रूह बेचैन है उनके आने की आस में,
कोई तो मेरे आशियाने में फलक का एक कतरा दे दे।
और कितना रोकूँ, ,मैं अपनी टूटती सांसों को,
कोई तो मी बिखरते सपनो को थोड़ा हौसला दे दे।

शेष हैं अभी दिले मासूम की आखरी ख्वाहिशें,
कोई तो मेरे ख्वाहिशों को इनका अंजाम बता दे।
जिस्म हो रहा जिसमे रूह से जुदा अब,
कोई तो मेरे यार तक मेरा पैगाम पहुँचा दे।