Saturday, 3 January 2009

लालू के बहाने

कभी-कभार जीवन में हमारा परिचय कुछ ऐसी शख्सियतों से होता है जिनकी छवि हमारे मानस पटल पर बनी रहती है। श्री लालू प्रसाद जी का व्यक्तित्व इसका सर्वश्रेष्ठ उदाहरण है। आम जनों के मध्य अपनी शुद्ध गंवई भाषा और विचारों के कारण अद्वितीय छवि बना चुके श्री प्रसाद देश के एकमात्र राजनेता हैं जिनका नाम बिहार का हर बच्चा जानता है। श्री प्रसाद की इस लोकप्रियता के लिये पूर्ण रुपेण मीडिया जिम्मेवार है और इसे इसका श्रेय मिलनी ही चाहिये। साथ ही यह भी एक अकाट्य सत्य है कि मीडिया ने जितनी स्वतंत्रता के साथ श्री लालू प्रसाद और उनके व्यक्तित्व को जनता के समक्ष प्रस्तुत किया है वह श्री प्रसाद हैं जो मीडिया कर्मियों को इतनी स्वतंत्रता दे देते हैं, वर्ना मजाल है कि कोई नीतीश जी या फ़िर ललन सिंह के निजी रिश्ते को जगजाहिर करने की जुर्रत करे और साबूत बच जाये।
वर्तमान में “लालू “ एक ब्रांड के रुप में स्थापित हो चुके हैं और सारी दुनिया इसे मानती भी है। पिछले साल जब श्री प्रसाद विदेश दौरे पर सिंगापुर गये थे तब वहां उन्होंने एक मैनेजमेंट संस्थान में जिस अंदाज में छात्रों को संबोधित किया वह अन्य भारतीय प्रतिनिधियों से अलग और भारतीयता से परिपूर्ण था। श्री प्रसाद के इस संबोधन की विश्व स्तर पर प्रशंसा की गयी लेकिन बिहार के सामंती मीडिया ने इस संबंध में कुछ भी नहीं प्रकाशित किया।
मीडिया के माध्यम से सादगी से भरे अपने जीवन को जगजाहिर करने का हौसला सिर्फ़ और सिर्फ़ श्री लालू प्रसाद में ही है और इसी का परिणाम हैं आज के कुछ चर्चित चेहरे। इन चेहरों में शेख़र सूमन का चेहरा भी नजर आता है जो रेख़ा जैसी उत्कृष्ट अभिनेत्री के साथ अपने कैरियर की शुरुआत के बावजुद गुमनामी के शिकार थे। वह तो लालू नाम का चमत्कार था जो पूरे भारत में स्टार प्रस्तोता बन सके। इससे पहले उनकी औकात क्या थी, यह पूरा देश जानता है।
वास्तव में श्री लालू प्रसाद की छवि को हास्य चरित्र के रुप में प्रस्तुत करने के पीछे मीडिया की सामंती सोच जिम्मेदार है। मीडिया वाले यह कतई नहीं चाहते कि एक गंवई और ठेंठ बिहारी की छवि सकारात्मक हो। जब तक राजद की सरकार बिहार में काबिज रही तब तक सुदूर इलाकों में लगी एक छोटी सी चिंगारी को प्रथम पृष्ठ पर जगह मिल जाती थी और वही आज पटना में एक नाबालिग की इज्जत सरेआम लूट ली जाती है और इस ख़बर को अंदर के पन्नों पर भी जगह नहीं मिलती। समाचार प्रकाशित करने के तरीकों में यह अंतर क्यों है इसका कारण जानना इतना मुश्किल नहीं है।
बिहार में एक कार्टुनिस्ट के रुप में अपनी पहचान स्थापित कर चुके पवन जिन्होने अपने कैरियर की शुरुआत ही श्री लालू प्रसाद के कार्टुन्स के साथ की और लोकप्रियता के शिख़र तक जा पहुंचे। अभी हाल ही में इन्होंने श्री प्रसाद पर एक एनीमेशन फ़िल्म बनायी है। इस फ़िल्म में श्री प्रसाद को नंग धड़ंग अवस्था में हाथ में लोटा लेकर मीडिया वालों से भागते हुए दिख़लाया गया है। यही नहीं अंत में यह भी दिख़ाया गया है कि वह भागते हुए एक गुसलख़ाने में घुस जाते हैं। एक कैमरामैन गुसलख़ाने के दरवाजे में बने बिल में कैमरा डालकर अंदर के चित्र लेने के प्रयास को दिख़ाया जाता है। इसपर श्री प्रसाद गुसलख़ाने से निकलकर उस कैमरामैन से कहते हैं कि “तेरा टीआरपी को मच्छर काटो, अब इहां से का लाईव टेलीकास्ट करेगा रे”।
अपने फ़िल्म के बारे में पवन यह भी कहते हैं कि वे स्वयं श्री प्रसाद के व्यक्तित्व से प्रभावित हैं। अब कोई उनसे पुछे तो कि श्री प्रसाद को गुसल्ख़ाने में दिख़ाकर लालू जी को किस रुप में प्रस्तुत करना चाहते हैं। हैरत होता है जब एक पत्रकार कहता है कि लालू जी के लिये रिटायरमेंट के समय के लिये कार्य का प्रबंध हो गया है। उनके कहने का आशय यह है कि श्री प्रसाद अब राजनीति से सन्यास लेकर कार्टून फ़िल्मों में काम करते नजर आयेंगे।
मीडिया वालों का दोहरा चरित्र आश्चर्यजनक तो नहीं है लेकिन अवास्त्विक अवश्य है। राष्ट्रीय स्तर पर पत्रकारिता की जो परिभाषा परिभाषित है वह बिहार में एकदम से विपरीत हो जाती है। बिहार में पत्रकारिता का मतलब ही लालू के ख़िलाफ़ लिख़ना और उन्हें हंसी के पात्र के रुप में प्रस्तुत करना है।
श्री प्रसाद पर बनायी गयी यह कार्टुन फ़िल्म भी लोकप्रिय होगी और इसमें भी कोई शक नहीं कि सामंती मीडिया का कुचक्र भी सफ़ल होगा। क्योंकि राजद अभी भी गरीबों, दलितों और पिछड़ों की पार्टी है और इस दल के अन्य नेताओं ( जो सिर्फ़ लालू की छवि भुनाना जानते हैं ) को इससे कुछ भी लेना देना नहीं।
सच्चाई यह है कि मीडिया के इस दोगले रवैये से सामाजिक न्याय की शक्ति कमजोर हो रही है। अब स्वयं श्री प्रसाद को यह समझना होगा कि ये मीडिया वाले उनका और बिहार का भला चाहने वाले नहीं हैं। इनपर रोक लगनी चाहिये। इन्हें बताना हो कि लालू प्रसाद इस देश के सम्मानित नेता हैं न कि गुसलख़ाने में घुसा एक कार्टुन।

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