जननायक की आंख़ों में आंसू
दिनांक 24 जनवरी 2009, स्थल- एक सामाजिक न्याय की धारा को मजबूत करने वाले दल के मजबूत विधायक का आवास। लगन के दिनों मे यह आवास जनमासे की शक्ल ले लेता है और उन दिनों युं लगता है जैसे यह विस्तृत आवास एक महत्वपूर्ण विवाह केंद्र बन गया है। ख़ैर आज कोई लगन का दिन नहीं है फ़िर भी कनात लगे हैं और लोगों की भीड़ लगी है। झंडा ढोने वाले लोग हाथों में झंडा लेकर दल के प्रमुख़ नेता की जय-जयकार लगा रहे हैं। दल के पहरुये महंगी गाड़ियों से उतर रहे हैं और उनके पीछे उनके ध्वज वाहकों की भीड़ पहले तो दल के मुख़िया की जयकारा और बाद में जननायक अमर रहे का नारा बुलंद कर रहे हैं। बीच-बीच में पहरुओं का भी जयकारा सुनाई दे जाता है।
सड़क के दोनों तरफ़ बड़े-बड़े होर्डिंग लगे हैं जिनसे स्पष्ट होता है कि आज यहां उस व्यकित को याद किया जायेगा जिसने सामाजिक न्याय की धारा को बिहार में मज्बूत किया था। अपने महान पिता की याद में एक महान पुत्र जो सुशासन सरकार में जनता को सुचना देने वाले विभाग के मुख़िया हैं, का लिख़ा श्रद्धांजलि पत्र पटना से प्रकाशित होने वाले सभी प्रमुख़ समाचार पत्रों में छपा है। अब कारण चाहे जो भी हो उन्होंने अपने पिता को बड़ी शान से कई नेताओं का सम्मिश्रण बताया है। यदि जननायक आज जीवित होते तो अपने पुत्र के मेधा पर फ़ूले न समाते। ख़ैर अब लौटकर उसी स्थल पर पहुंचते हैं जहां जननायक को श्राद्धांजलि दी जा रही है।
दल के सुप्रीमो से लेकर आम कार्यकर्ता तक शामिल है इस विशेष सभा में। सांसद अपनी टिकट बचाने की आस लिये, विधायक अपनी सांसदगिरी सुनिश्चित करने की जुगत में और कार्यकर्ताओं के हाथों में कागज का ढड्ढर जिसमें स्वजनों के लिये नौकरी का आवेदन एवं ट्रांसफ़र का निवेदन शामिल है। सभी जमे हैं। सभी आने की आस देख़ रहे हैं।
बहरहाल दल के मुख़िया समेत कई प्रबुद्ध लोगों का आगमन हो चुका है, लोगो में नया जोश भर चुका है। लोग भागे चले जा रहे हैं अपने नेता की आगवानी के लिये। कोई बड़ा माला कोई छोटा माला लिये ख़ड़े हैं। जो कद-काठी से मजबूत हैं वे आगे तक जा पहुंचे है और जो मजबूर हैं वे पीछे ही ख़ड़े हैं।
श्राद्धांजलि कार्यक्रम की शुरुआत की जा रही है और लोग भाषण दे रहे हैं। कोई जननायक को याद कर रहा है तो कोई सुप्रीमो की महिमा का बख़ान कर रहा है और कोई अपने मन की भड़ास निकाल रहा है। सामने रख़ी तस्वीर में कर्पुरी जी गंभीरता से सोच रहे हैं। सामने पड़े एक फ़ूल पर कुछ बुंदे पड़ी हैं। मुझे अहसास हुआ ये ओस की बुंदें है मगर मेरे मन ने कहा ये जननायक की आंख़ों से गिरे हैं।
नवल किशोर कुमार
फ़ुलवारी शरीफ़, पटना
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