कुछ धागे,
बहुत पतले होते हैं,
जो कभी एक झटके में टूट जाते हैं,
और कभी एक कच्चा धागा,
आजीवन साथ निभाता है।
कुछ धागों में,
कपास के साथ और भी बहुत कुछ,
अदृश्य सा दिख़ने वाला तत्व पाया जाता है,
जिसे लोगों ने गांधी बाबा की,
चरख़ा पर सृजन होने वाली ख़ादी के,
नये अवतार की संज्ञा दे रख़ी है,
सुना है,
अब यह ख़ादी,
कर्ण कवच हो गया है,
और इंद्रदेव की कृपा से,
हमारे नेताओं को हासिल हो गया है,
जिनकी आत्मा,
बाजारों में कौड़ी के भाव बिकती है।
कुछ धागे,
अभी भी बेजान ठठरियों पर,
पारदर्शी होने के बावजूद,
सजीव हैं और सांस लेते हैं,
इनकी छाया में,
हडडियों का ढांचा,
नित दिन अपनी चमक बिख़ेरता है,
पसीने की बदबू,
ख़ुश्बू बन,
तन को महकाती हैं,
और फ़िर यही,
कपास के तुच्छ धागे,
कफ़न बन कर,
जीवन के सूर्यास्त तक,
साथ निभाते हैं,
क्योंकि,
कंकालों के अंदर की आत्मा,
बेमोल सही लेकिन बिकाऊ नहीं है।
Tuesday 17 February 2009
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment