करीब सात या सवा सात बज रहा होगा। अन्य दिनों की तरह में अपने कार्यालय से अपने घर जा रहा था। मेरी मोटर साईकिल की हालत ऐसे भी उतनी अच्छी नहीं रहती है। बरसात का पानी पड़ने के बाद तो और भी रूठ जाती है, मानो शिकायत कर रही हो कि यदि तुम मेरा ख्याल नहीं रखोगे तो में तुम्हारा ख्याल क्यों रखूंगी? इससे पहले कि वह और नखरे दिखाती मैंने अपने ब्यक्तित्व का दूसरा रूप दिखाया और उसे चलने को मजबूर कर ही दिया। अपने कार्यालय से निकल जैसे ही में चित्कोहरा पुल के नीचे पहुंचा तो भीड़ देख अपनी स्पीड को कम किया। कोलाहल सुन जिज्ञासा हुई सो गाडी साइड में खडा कर भीड़ के बीच घुस गया। मालूम हुआ कि दो आदमी लड़ रहे थे जिसमे एक आदमी का सर फट गया था। हर तरफ लोगो की भारी भीड़ थी और बिहारी गालियों की बौछार हो रही थी।
बेचैन आत्मा का स्वामी होने से एक फायदा यह होता है कि आप बिना फीस का वकील बन लोगों से सहानुभूति प्राप्त कर पते हैं। ऐसे भी मुफ्त में सम्मान किसे अच्छा नहीं लगता। मै भी अपना बड़प्पन दिखाने हेतु पुरे मामले कि तहकीकात करने लगा। तहकीकात के बाद मालूम हुआ कि सारा झगडा रोटी के लिए हुआ है। गवाह के रूप में जमीन पर रोटी और तरकारी बिखरे पड़े थे। मेरे दिल ने सोचा - कितनी अजीब बात है, हर झगडे के पीछे रोटी ही तो है। अगर हमारे बुश साहेब रोटी के लिए इराक पर हमला कर सकते हैं, पाकिस्तान भारत पर आँखें गुरेर सकता है, प्रचंड राजा को पदच्युत कर सकते हैं, नरेन्द्र मोदी गुजरात में दंगे करवा सकते हैं और हमारे सुशासन बाबु बिहार में पुलिस वालों से हर मोड़ पर जबरन भीख वसुल्वा सकते हैं तो यह गरीब रोटी के लिए एक दुसरे का सर फोड़ते हैं तो क्या गुनाह करते हैं।
यों भी गरीबों की लडाई में अमीरों को मज़ा आता ही है। मुफ्त में मनोरंजन का दूसरा विकल्प नहीं हो सकता। में भी खडा हो स्वयं को तसल्ली दे रहा था कि में अकेला नहीं जो रोटी के लिए लड़ता हूँ। मगर जिस रोटी के लिए में लड़ता हूँ उसके लिए हर गरीब को लड़ना चाहिए भले अमीर हम पर हसते रहें। हम लडेंगे तभी तो जीतेंगे और जीतेंगे तो रोटी पर अपना हक़ जता सकते हैं ताकि हमारे बच्चे भी बढ़ सके......................................
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