Friday, 2 May 2008

जब निकलेगा जनाजा मेरा

युग बीत गया दिल को टूटे आज मेरा हाल पूछते हो
कत्ल कर मेरे अरमानों का मेरा दिले हाल पूछते हो।

खुदा का शुक्र है मेरे रकीब कि सांसें हैं बाकी अभी
दो बूंद पलकों पर गिरा तुम मेरा फिकरे हाल पूछते हो।

वो भी क्या दिन थे जब हम मिलते थे रोज ख्वाबों मी
बरसता था सावन आंगन मे दिल मे आग जलता था।



तेरे केशुओं के घनी छांव मे गुजरते थे दिन रैन मेरे
मन मे तुम्हारा प्यार और तन मे तूफ़ान उमरता था।

बेवफा बारिश की बूंदे याद दिला मेरा दिल जलाते हो
भरी बरसात मे ही उजाडा था तुमने आशियाना मेरा।

ऐ मेरे गुजरे पल दूर चले जाओ मेरी नजरों से
चले आना फिर कभी जब निकलेगा जनाजा मेरा।




No comments: