Friday, 18 July 2008

पलकें बिछाये बैठा हुं

दीदार हुआ है जबसे काला तिल तेरे रुख़सार का,
दिल के दरवाजे पर दिल का तोहफ़ा लिये बैठा हुं।
इन बेचैन निगाहों को एक पल भी मयस्सर नहीं,
तुम्हारी राहों में एक नया गुलिस्तां सजाये बैठा हुं।

कल जब किया था इकरार तुम्हारी कातिल नजरों ने,
खुदा की कसम सारी दुनिया की नजर चुराये बैठा हुं।
ऐ मेरी जाने तमन्ना, जीवन की हर सांस तुम्हारी है,
एक तेरी चाहत में सांसों को थामे जमाने से बैठा हुं।

तुम्हारी बाहों में ही है जन्नत मेरी, दोनों जहान की,
खिलेगा चांद मेरे आंगन मे, इसी इंतजार में बैठा हुं।
मासूम दिल के मासूम अरमान बहक न जायें कहीं,
सदियों से अपने अरमानों को जंजीरों में जकड़ बैठा हुं।

ये आग है या तेरा हुस्न, यह तो ख़ुदा ही जानता है,
अपने बज्म के हर शय में आग लगाये बैठा हुं।
गम नहीं कि अब दोजख़ मिले या जन्न्त दीवाने को,
तेरे प्यार में मेरे हबीब जनमों से पलकें बिछाये बैठा हुं।

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