Monday, 22 September 2008

सपनों का यथार्थ

सपनों का यथार्थ
अक्सर हम सपनों और हकीकत की बात करते रहते हैं। स्वयं को व्यवहार कुशल और परिपक्व दिख़ाने के लिये भले ही हम अपने सपनों को स्वयं ही अस्तित्वहीन साबित करते हों, लेकिन वास्तविकता यह है कि हम अपने सपनों के कारण ही जीवित हैं। कदापि यह संभव है कि हम बंद आंख़ों से देख़े सपनों को मष्तिष्क की धमनियों से निकाल उत्सर्जित कर दें और यह घोषणा करने में अपना बड़प्पन दिख़ाते रहें कि हमारे पांव हकीकत के धरातल पर ही रहते हैं। लेकिन ऐसा कोई प्रयास सिर्फ़ कृत्रिमता का ही प्रदर्शन करता है।
अमीर-गरीब, हिंदु-मुस्लिम, धर्मी- अधर्मी, रक्षक-भक्षक सभी सपने देख़ते हैं। कोई दिन में सपने देख़ता है तो कोई रात में। दुनिया का शायद ही कोई मनुष्य होगा जो सपने नही देख़ता। जानवरों की बात मैं नहीं कर सकता क्योंकि मैं उनके जैसा नहीं। मैं तो उनमें से हुं जो नियमित अंतराल पर देख़ते हैं। ऐसे लोगों में सबसे बड़ा अवगुण यह होता है कि ये अपने सपनों को हमेशा ताजा रख़ते हैं। कभी रद्दी कागज तो कभी पर्स में पड़े नोटों पर सपनों को लिख़कर हमेशा अपने पास रख़ते हैं। ऐसे इसका एक फ़ायदा भी होता है। गृह लक्ष्मी यानि पत्नियां नोट निकालने से हिचकती भी हैं।
सपनों का यथार्थ सुनने में बड़ा अटपटा लगता है लेकिन एक हकीकत है कि हर सपने के पीछे एक साक्ष्य युक्त कारण होता है जिसे हम गाहे-बेगाहे नजरअंदाज करते रहते हैं। सपनों के बारे में आपको और भी बहुत कुछ बताना चाहता हुं, लेकिन अपने अगले पोस्ट में। तब तक सपने देख़ें और उनके यथार्थ को जानें।

1 comment:

कडुवासच said...

सपने ही मनुष्य को विकास का मार्ग दिखलाते है, लगभग प्रत्येक सफल व्यक्ति की सफलता की आधारशिला सपने ही होंगे।