Monday, 7 July 2008

आखरी पैगाम

बुझा है चिरागे जहाँ मेरे दिल का एक ज़माने से,
कोई तो मेरे महबूब को मेरे मुकाम का पता बता दे।
अपनी कब्र पर बैठ देख रहे राह उनके आने की,
कोई तो मेरे हमराह को मेरा दिले हाल बता दे।

वोक्त जा रहा है लम्हा लम्हा थामे राह अपनी,
कोई तो मेरे लम्हों को मेरे घर का राह दिखा दे।
खामोश जुबान, बंद होती पलकों में हसरते हैं बाकी
कोई तो मेरे दिलदार की वही दिलकश सूरत दिखा दे।

दिल बेजार है, रूह बेचैन है उनके आने की आस में,
कोई तो मेरे आशियाने में फलक का एक कतरा दे दे।
और कितना रोकूँ, ,मैं अपनी टूटती सांसों को,
कोई तो मी बिखरते सपनो को थोड़ा हौसला दे दे।

शेष हैं अभी दिले मासूम की आखरी ख्वाहिशें,
कोई तो मेरे ख्वाहिशों को इनका अंजाम बता दे।
जिस्म हो रहा जिसमे रूह से जुदा अब,
कोई तो मेरे यार तक मेरा पैगाम पहुँचा दे।

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